मोदी सरकार ने सरकारी कंपनियों की कमान प्राइवेट सेक्टर को देने की सोच ली हैं। जी हां सरकार अब बड़ी संख्या में सरकारी कंपनियों यानी पीएसयू की कमान प्राइवेट सेक्टर को सौंपना चाहती है। वह उसी पीएसयू में अपनी हिस्सेदारी 51 प्रतिशत से ज्यादा रखना चाहती है, जिसमें ऐसा करना जरूरी है। यही कारण है कि 28 अक्टूबर को कैबिनेट सेक्रटरी की अध्यक्षता में एक बैठक बुलाई गई है। इसमें तय होगा कि कैसे पीएसयू की कमान प्राइवेट सेक्टर को सौंपी जाए। इस बैठक में आठ मंत्रालयों के सचिवों को बुलाया गया है।
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बता दें कि नवभारत टाइम्स की रिर्पोट के अनुसार जिन मंत्रालयों के सचिवों को इस बैठक में बुलाया गया है, इसमें वित्त, मुख्यालय, कानून, ऑयल, पेट्रोलियम, इस्पात और रसायन मंत्रालय के सचिव शामिल हैं। बैठक में उन पीएसयू की लिस्ट बनाई जाएगी, जिनको प्राथमिक हाथों में सौंप दिया जा सकता है, यानी सौंपा जाना चाहिए। इसके बाद पीएमओ की अनुमति के बाद विनिवेश विभाग इनमें सरकारी भाग बेचने की प्रक्रिया शुरू कर देगा।
जैसा कि आप जानते हैं कि सरकार ने हाल ही में ऑयल कंपनी बीपीसीएल में पूरी हिस्सेदारी बेचने और शिपिंग कॉर्पोरेशन में अपनी भागीदारी को 51 फीसदी से कम करने का फैसला किया है। साथ ही इसकी विनिवेश प्रक्रिया शुरू हो चुकी है।
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सरकारी अधिकारी ने इस बारे में जानकारी देते हुए बताया कि सरकार चाहती है कि पीएसयू में उसकी कुछ हिस्सेदारी रहे, लेकिन प्रबंधन उसके हाथों में न रहे। ऐसा केवल तभी संभव है, जब उस पीएसयू में सरकारी भागीदारी 51 प्रतिशत से कम हो जाए। अधिकारी के अनुसार सरकार की एक रणनीति यह भी है कि जिस पीएसयू में उसकी हिस्सेदारी 51 फीसदी या उससे ज्यादा है तो उसको या तो 51 फीसदी से कम लाया जा सकता है, या उस हिस्सेदारी को पूरा बेच दिया जाए।
साथ ही सरकार की यह भी सोच रही है कि पीएसयू में उसकी हिस्सेदारी एक कंपनी को न बेचकर दो या तीन कंपनियों को बेची जानी चाहिए। इससे प्रबंधन की कमान दो या तीन कंपनियों के हाथों में रहेगी।
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